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15. जीवों में श्वसन
ऑक्सीजन युक्त हवा शरीर के अन्दर ले जाने की क्रिया को अन्त:श्वसन कहते हैं।
कार्बन डाइऑक्साइड युक्त हवा को शरीर से बाहर निकालने की क्रिया को उच्छवसन कहते हैं।
वे सभी क्रियाएँ जिससे हमें ऊर्जा प्राप्त होती है, उसे श्वसन कहते हैं।
शरीर की कोशिकाओं में ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में ग्लूकोज अणुओं का रासायनिक अपघटन श्वसन कहलाता है।
ग्लुकोज अणुओं के अपघटन के फलस्वरूप CO2 और जल प्राप्त होता है तथा ऊर्जा मुक्त होती है।
ऑक्सी श्वसन- ऑक्सीजन की उपस्थिति में होने वाले श्वसन को ऑक्सी श्वसन कहते हैं।
ऑक्सी श्वसन में ऑक्सीजन की उपस्थिति में ग्लुकोज का अपघटन होता है।
अनॉक्सी श्वसन- ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होने वाले श्वसन को अनॉक्सी श्वसन कहते हैं।
अनॉक्सी श्सवन में ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में ग्लुकोज का अपघटन होता है। इस क्रिया के फलस्वरूप अल्कोहल, कार्बन डाइऑक्साइड तथा ऊर्जा प्राप्त होता है।
ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में ग्लूकोज का अल्कोहल में अपघटन होने की क्रिया किण्वन कहलाता है।
अनॉक्सी श्वसन एंटअमीबा, यीस्ट तथा जीवाणुओं में होता है।
यीस्ट एक कोशिकीय सूक्ष्मजीव है जिसमें अनॉक्सी श्सवन होता है और इथाइल अल्कोहल बनता है।
यीस्ट का प्रयोग अंग्रजी शराब, पावरोटी एवं बिस्कुट उद्योग में होता है।
मानव में श्वसन
मानव में श्वसन क्रिया में भाग लेने वाले मुख्य अंग निम्नलिखित है—
नासाद्वार, नासागुहा, मुख गुहा, ग्रसनी, श्वासनली, फेफड़ा, आदि।
फफेड़ा वक्षगुहा में पाया जाता है।
वक्षगुहा को आधार प्रदान करने के लिए एक पेशीय परत डायफ्राम होती है। इसी के कारण श्वसन के दौरान वक्षगुहा का आयतन बढ़ता-घटता है।
हमारे शरीर के रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबीन फेफड़ा से ऑक्सीजन युक्त रक्त को शरीर के विभिन्न कोशिकाओं तक पहुँचाने का कार्य करता है। तथा कार्बन डाइऑक्साइड को शरीर के विभिन्न भागों के कोशिकाओं से फेफड़ा तक लाता है।
मछलियों का मुख्य श्वसन अंग गलफड़ा है।
मानव, पक्षीयों एवं जानवरों आदि का मुख्य श्वसन अंग फेफड़ा है।
केंचुआ का मुख्य श्वसन अंग त्वचा है।
कॉकरोच (तेलचट्टा) तथा अन्य कीटों में श्वसन के लिए उनके शरीर पर छिद्र होते हैं जिसे श्वास रन्ध्र कहा जाता है। इसी श्वास रन्ध्र से श्वसन होता है।
तेलचट्टा का मुख्य श्वसन अंग श्वास रन्ध्र (ट्रैकिया) है।
अमीबा और पैरामीसियम में श्वसन (गैसों का आदान-प्रदान) शरीर के सतह विसरण द्वारा होता है।
पत्तियों में पाये जानेवाले छोट-छोटे छिद्र को रंध्र (स्टोमाटा) कहा जाता है।
पौधों में श्वसन (गैसों का आदान-प्रदान) रंध्रों द्वारा होता है।
हमें रात्री में पेड़ों के नीचे नहीं सोना चाहिए क्योंकि पेड़ रात्री में प्रकाश संश्लेषण नहीं होने के कारण कार्बन डाइऑक्साइड मुक्त करते हैं। जिस कारण पेड़ों के नीचे साँस लेने में कठीनाई होती है और गर्मी लगती है।
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